नए प्रयोग से घाटी में दरक सकता है नेकां-पीडीपी का जनाधार

जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी की बुनियाद परिवारवाद तथा वंशवाद के खिलाफ है। पिछले कई दशक से प्रदेश में दो परिवारों की ही हुकूमत रही है। रविवार को गठित नई पार्टी इसी सोच को बदलने के लिए दिल्ली का ब्रेन चाइल्ड और नया प्रयोग बताया जा रहा है। 


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले का यह गेम प्लान है। कश्मीर में जनाधार न होने की वजह से भाजपा नई पार्टी का इस्तेमाल अपनी ताकत बढ़ाने में कर सकती है। नई पार्टी के जरिये नेकां तथा पीडीपी की ताकत को कम करना भी मकसद है। 

विश्लेषक मानते हैं कि यदि नवगठित पार्टी ने अगले कुछ महीनों में जमीनी स्तर पर कामकाज किया तो इसका जनाधार मजबूत हो सकता है क्योंकि इसमें शामिल होने वालों में ज्यादातर पूर्व विधायक, पूर्व एमएलसी तथा पूर्व मंत्री हैं। सभी का अपने-अपने क्षेत्र में खासा प्रभाव भी है। 

नेकां और पीडीपी के प्रमुख नेताओं के अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सात महीने से अधिक समय से नजरबंद होने से पार्टी गतिविधियां बिल्कुल ठप हैं। ऐसे में नई पार्टी के पास जनता के बीच जाने तथा उनकी समस्याओं को उठाने का भरपूर मौका है। 
इसका वे फायदा उठा सकते हैं। नेकां और पीडीपी नेताओं की गैरमौजूदगी के बीच जनता के बीच पहुंचकर अपनी पार्टी के नेता राजनीतिक शून्यता की स्थिति को भर सकते हैं। पार्टी अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी भी कहते हैं कि अपनी पार्टी का मकसद जनता की आवाज बनना है। 

उन्हें मुश्किलों से निकालना है। सत्ता प्राप्ति उद्देश्य नहीं है। दावा किया कि अगले कुछ महीने में पार्टी न केवल कश्मीर बल्कि जम्मू में भी अवाम की आवाज बनेगी। 

जम्मू-कश्मीर में शुरू से ही कश्मीर का मुख्यमंत्री रहा है। अब्दुल्ला तथा मुफ्ती परिवार का राज रहा है। इसमें भी ज्यादातर समय नेशनल कांफ्रेंस की सरकार रही है। भाजपा की ओर से लगातार दो परिवारों के राज को लेकर हमला किया जाता रहा है। 

प्रदेश की दुर्दशा के लिए इन्हीं दोनों परिवारों को ही कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है। माना जा रहा है कि अपनी पार्टी इस व्यवस्था को बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है। 

राजनीतिक ध्रुवीकरण की संभावना
हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि नई पार्टी से जम्मू और कश्मीर दोनों ही जगह राजनीतिक ध्रुवीकरण होगा। राजनीतिक शक्तियां भाजपा और अपनी पार्टी के खिलाफ एकजुट होंगी। ऐसे में पहले से राजनीति में सक्रिय ताकतों को अपनी मौजूदगी का एहसास कराने में ज्यादा दिक्कतें नहीं आएंगी। 

एक और शेख अब्दुल्ला पैदा करने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. हरिओम कहते हैं कि केंद्र सरकार ने एक और शेख अब्दुल्ला पैदा करने की कोशिश की है। इसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं। केंद्र सरकार को राष्ट्रवादी ताकतों को ही आगे बढ़ाना चाहिए था।